October 20 2018
समझ नही आता कैसे मैं बयां करुं!!
वो दिन रविवार मेरे लिये ऐतवार बना था……
ना जाने कौन मुझे सुबाह के 5 बजे उठा गयी, आंखों मे नीन्द थी, चेहरे पर मुस्कान, मैं खुद मे हैरान था, कैसे हो रहा है ये सब, इतनी सुबाह उठना, ठंडे पानी से नहाना, उफ्फ कुछ तो था, जो मुझे अपनी तरफ़ खिंच रही थी, 6 बजे तक जुता-मोजा और कोबरा वाला प्रफ्यूम लगा कर रेडी हो गया था, ना जाने मैं उस दिन कैसे इतना खूबशूरत दिखने लगा था, मैट्रो स्टेसन पर सब की नजर मेरी तरफ़ थी, और मैं ख्वाबों मे खोया, लगभग 7:30 बजे ओल्ड दिल्ली स्टेसन पहंच गया, वहां तो मुझे हर चीज़ नई और खूबशुरत दिख रही थी, मुझे सभी का चेहरा एक ही चेहरा दिखता था, टिकट काटने वाले अंकल का भी चेहरा उसी के चेहरे से मिलता था, एक टिकट लिया फ़िर दौड़ गया और ट्रेन खोजने लगा, फ़िर ट्रेन मिली तो उसको खोजने लगा, वो अकेली, मायुस सी, नजरों मे कुछ सोंचती हुई दिखी, मैं भी हिम्मत कर बैठ गया सामने मेरे चेहरे पर मास्क था और वो हमारी पहली मुलाकात, सुबाह का टाईम था, हल्की-हल्की हवा चल रही थी, उसका जूल्फ उसके चेहरो को ढक देता था, मुझे नही पता मेरे साथ किया हो रहा है, मुझे समझ ही नही आ रही थी बोलना क्या है, अचानक मैं अपने होंठ को अंगुठे और उंगली से दबाया और जोड़ से सीटी लगा दी, आवाज़ सुनते ही चाय वाले भाई पलट कर देखा और मैं ईसारा मे उसे बुला लिया, भाई दो चाई दो, वो मेरी तरफ़ देखने लगी और सायद कुछ बोलने वाली थी फ़िर क्यों खामोस सी हो गई, मैं पैसा दिया चाय वाला चला गया, और मैं उनसे अपनी पहली बात बोल लो चाय पियो और एक चाय वाली ग्लास आगे किया, वो ना मुझे अभी तक पहचान पाई थी और अंसर भी मुझे पता था No Thanks, वो भी ऐसा ही कुछ जवाब दी, शूकृया!
मैं अपनी चाय वाली ग्लास लिया और मास्क उतारा, वो मेरे चेहरा ही देखती रह गयी और मुह से एक आवाज़ निकला तुम!!!
ना जाने उसका चेहरा गुलाबों सा खिल गया, उनके आंखों मे हजारो प्रश्न दिखने लगा मुझे, 10 मिनट से खामोश थी सब का बदला लेने लगी, एक ही साथ कई सवाल पूछ डाली, लेकिन जैसे मैं अपना हाथ उसकी चाय की तरफ़ बढाया वो जल्दी से उठाए और होंटो से लगा ली और फ़िर बोली ये मेरी थी, कुछ टाईम हमारी गुफ्तगू हुइ और अचानक वो चाय वाले को देख कर बोली फ़िर उसी स्टाईल मे बुलाऔ ना प्लीज, फ़िर हम दोनो चाय पिये एक साथ गर्म-गर्म……
हम दोनो आमने-सामने थे अब साथ साथ बैठ गाये, पता ही नही चला ट्रेन कब चलने लगी, हम बहत सारी बाते किये, वो घर ले जा रही थी कुछ तोहफ़ा अपने भाई-बहनो के लिये, वो मुझे बोली क्या खाना है आपको, मैं बोला ये लड्डू , वो रैपर हटाई और मेरी तरफ़ बढाई, मैं दो लड्डू निकाला और एक मैं खाया और एक उसको दिया, फ़िर बोली और कुछ खाना है फ़िर बाद मे सिकायत मत करना, मैं बोला बस- काफ़ी है, हमारी तो चाय पर ही डेट थी आपने तो लड्डू भी खिलाई, फ़िर वो मेरे कंधे पर अपना सर रख और आंखे बंद कर बहत से सवालात के जवाबात वो दी और बहत से मैं, उनकी कोमल उंगली मेरे हाथो के उंगलीयों मे थी, ना जाने मैं अपनी जिन्दगी की सबसे खूबसूरत लम्हे मे थे, अचानक मेरी नाजरे बोल गयी- उठ जा मेरा सफ़र खत्म, वो बोली चलो कुछ दूर और, मैं बोला फ़िर कभी……और हां यहां से सिर्फ 10 मिनट लगते मेरे रूम पर पहुंचने मे……वो मेरे साथ ट्रेन के गेट तक आई और मयुस आंखों से BYE-BYE कर बिना मेरी तरफ़ देखे अपने सीट पर चली गई, मैं तब तक खड़ा रहा जब तक ट्रेन आंखो से औझल ना हो गई……और झट से मेरी आंखे खुल गई, और मैं मुस्कूराने लगा……बालों मे हाथ डाला और बोला opss…………